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हमारी सोसायटी में वरिष्ठ सदस्यों के मिल-जुल कर बैठने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है, जहां वे सब नियमित रूप से सुबह-शाम अपनी महफ़िल जमाते हैं। बहुत अच्छा माहौल रहता है वहाँ। भजन-कीर्तन, गाना-बजाना, गपबाज़ी, ये सब तो चलता ही है; साथ ही जन्मदिन, वर्षगांठ आदि जैसे विशेष अवसरों पर जम कर दावतें भी उड़ाई जाती हैं। खूब रौनक रहती है। बारिश हो या आंधी-तूफान, वे सब अपने घरों से निकाल कर वहाँ आने से नहीं चूकते। अगर उनमें से कोई कभी अस्वस्थ हो जाए और नहीं आ सके, तो दो-चार लोग इकठ्ठा होकर उनकी खैरियत पूछने उनके घर पहुँच जाते हैं।
मुझे जब अपने एक प्रॉजेक्ट के सिलसिले में कुछ वरिष्ठ लोगों से इंटरव्यू करने कि जरूरत पड़ी, तो मैंने वहीं जाकर उनको घेरने की ठानी। मगर मैंने यह नहीं सोचा था कि उनको बात करने के लिए मनाना इतना मुश्किल होगा। वैसे तो वे सब बहुत स्नेही थे, सबने बहुत गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। लेकिन जब बात प्रॉजेक्ट के लिए सवाल करने की आयी, तो सब बहाने बना कर खिसक लिए। बहुत मुश्किल से एक-दो लोगों को मना तो लिया, पर सबके सामने बात करने को उनमें से कोई भी तैयार नहीं था। अंत में तय हुआ कि उनकी सुबह की महफ़िल खत्म होने के बाद ही मैं उनसे एक-एक कर अलग से बात करूंगी। ज़ाहिर था कि वे मुझे कुछ ऐसा बताना चाहते थे, जो सबके सामने कह पाना उनके लिए संभव नहीं था। उनकी उस समृद्ध छवि और परिपूर्ण मुस्कान के पीछे क्या सचमुच कुछ ऐसा था, जो अनकहा रह गया था, और जिसे वे एक अजनबी के साथ साझा करके अपना मन हल्का करना चाहते थे? और फिर बातचीत के दौरान उन्होंने जो कुछ बताया, वह सचमुच आँखें खोलने वाला और विचारणीय था।
पचासी वर्षीय एक अंकल अपने बेटी दामाद के साथ रह रहे थे। जब उनके विदेश में बसे बेटे ने उनका बंगला जबरदस्ती बिकवा दिया, यह कह कर कि उनका इस उम्र में वहाँ अकेले रहना सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं है, तो उनकी बेटी ने आगे आकर पूरे अधिकार के साथ अपने और अपने पिता के लिए हिस्से की मांग की, जो कि भाई को मन मार कर देना ही पड़ा। उनकी बेटी ने न सिर्फ अपने पिता को उनकी इच्छा के विरुद्ध विदेश जाने से रोक लिया, बल्कि अपने हिस्से के पैसों से उनके लिए अपनी ही सोसाइटी में एक फ्लैट भी खरीदा, और अपने पिता की पसंद का सारा सामान उस घर में करीने से सजा दिया। उस घर में रसोई के अलावा सब कुछ मौजूद है, क्योंकि रहते हैं वह अपनी बेटी के साथ उसके घर में ही, क्योंकि उनके बेटी दामाद उन्हें अकेला रहने नहीं देते। बावजूद इसके, अपना खुद का एक घर होने से जो आत्मविश्वास उन्हें मिला है, उसकी वजह से उनके अंदर जीने की इच्छा जाग गई है।
अस्सी वर्षीय एक आंटी ने अपने इकलौते बेटे के दबाव डालने पर पचपन वर्ष की उम्र में ही अपनी उस अच्छी-खासी नौकरी से समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी, जिसके दम पर उन्होंने अपने पति के असमय अकस्मात निधन के बाद अपने बेटे को बिना किसी की मदद के पाला पढ़ाया था। और इसका कारण था कि उनके बेटा बहू अपने छोटे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त होकर अपने करियर की उच्च महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना चाहते थे। परिवार में उनकी उपयोगिता तो बच्चे के स्कूल जाने के साथ ही कम होती गयी थी। और अब तो वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश चला गया है। बेटा बहू अपने जीवन में व्यस्त हैं। उनकी खुद की जो भी सेविंग थी, वह कब की खत्म हो चुकी। अब उनकी स्थिति घर में बेकार पड़े पुराने फर्नीचर से ज्यादा और कुछ भी नहीं। यूं देखा जाए तो उनके पास सब कुछ है, लेकिन अपना कहने को कुछ भी नहीं, अपना स्वाभिमान भी नहीं। अब तो वह मात्र जीवन काट रही हैं, इस इंतजार में कि किसी एक दिन मृत्यु ही आकर उन्हें वह पंख देगी, जिनके सहारे वह खुले आकाश में स्वच्छंद होकर उड़ पाएंगी।
यह तो हम सब जानते ही हैं कि उम्र बढ़ना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम जीवन में कई बड़े बदलावों का अनुभव करते हैं, जिनमें करियर में बदलाव और रिटायरमेंट, बच्चों का घर से चले जाना, प्रियजनों को खोना, शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ और यहाँ तक कि स्वतंत्रता का अभाव भी शामिल है। हम इन बदलावों को कैसे संभालते हैं और उनसे कैसे आगे बढ़ते हैं, यही अक्सर स्वस्थ बुढ़ापे की कुंजी होती है।
वृद्ध वयस्कों के लिए एक स्वस्थ जीवनशैली में निम्न शामिल हैं:
- स्वस्थ भोजन
- उचित निद्रा
- नियमित शारीरिक गतिविधि
- अपने वजन पर नियंत्रण
- अपने दिमाग को सक्रिय रखना
- स्वयं को व्यस्त रखना
- सामाजिक संपर्क बनाए रखना
- नियमित स्वास्थ्य जांच आदि
लेकिन इसके साथ ही उपरोक्त दो व्यक्तियों के उदाहरणों तथा वृद्धाश्रमों में अन्य अनेक लोगों से हुई अनौपचारिक बातचीत से स्वस्थ सफल वृद्धावस्था बिताने के लिए जो महत्वपूर्ण व्यावहारिक सूत्र हमें प्राप्त हुए, उनका सार हम आप सबके लिए यहाँ दे रहे हैं:
- वृद्धावस्था के लिए तैयारी पहले से करें। अपनी जमापूँजी अपने हाथ में रखें। आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान के लिए बहुत जरूरी है।
- जब तक संभव हो, काम करते रहें। सक्रिय और व्यस्त रहने से वृद्धावस्था से जुड़ी अनेक समस्याओं का समाधान अपने-आप हो जाता है।
- अपने परिवार के मोह और दबाव में आकर अपनी इच्छा के विरुद्ध कोई भी निर्णय न लें। समय और परिस्थितियाँ अकसर व्यक्ति में बदलाव ले ही आते हैं। अपेक्षाएं ज्यादातर निराशा का कारण बनती हैं।
- अपना सामाजिक संपर्क बरकरार रखें। अपने हमउम्र दोस्त रिश्तेदारों से मिलना-जुलाना और फोन पर बात करते रहना आपकी दिनचर्या का हिस्सा बना रहना चाहिए। इससे घर में और बाहर किसी भी प्रकार के शोषण से बचे रहने में बहुत मदद मिलती है।
- वर्तमान में जीने की आदत डालें। अतीत की यादें अकसर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं, और भविष्य की तो कोई गारंटी है ही नहीं।
- खुश रहें, और खुशियां बांटें। अच्छा व्यवहार व्यक्ति को लोकप्रिय बनाता है।
- अपने शौक बरकरार रखें। इनसे आपको जीवन में उद्देश्य और खुशी मिलेगी।
याद रहे, वृद्धावस्था का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन मन-मस्तिष्क कभी बूढ़ा न हो, इसके लिए हमारे पास कई विकल्प हैं। अपनी प्राथमिकताएं सही रखें, और वृद्धावस्था में भी जीवन का भरपूर आनंद लें।
लेखिका: डा. अनीता एम कुमार