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जैसा कि हम सब जानते हैं कि वृद्धावस्था में गिरना एक आम और गंभीर समस्या है, और बुजुर्गों को ज़्यादातर चोटें गिरने की वजह से लगती हैं । लेकिन हम शायद यह नहीं जानते कि इसके परिणाम कितने घातक हो सकते हैं।
गिरने की वजह से फ्रेक्चर हो जाने पर किसी बुजुर्ग व्यक्ति के जीवन में कितनी उथल-पुथल हो सकती है, इसकी गंभीरता को मैंने एक ओल्ड एज होम में रह रही एक महिला के केस को स्टडी करने के दौरान समझा।
यह महिला एक संपन्न परिवार से थीं। दोनों बेटे विदेश में अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं। पति की मृत्यु के बाद वह अकेली रह गई थीं, लेकिन फिर भी अपने बंगले में ही पुराने नौकरों के साथ सब अच्छा-खासा संभाल रही थीं। फिर एक दिन यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट गई, और सब कुछ बदल गया। हिप और थाय बोन के मल्टीपल फ्रैक्चर की वजह से वह पूरी तरह से बैड-रिडन हो गईं। अब उनका उस उतने बड़े घर में अकेले रह पाना संभव ही नहीं था, इसलिए उनके बेटे मजबूरन उन्हें यहां के सुरक्षित माहौल में शिफ्ट कर के विदेश वापस लौट गए।
वैसे तो यहां चौबीस घंटे उनकी देखभाल करने वाला स्टाफ, हर तरह की सुविधा, और जरूरत पड़ने पर डाक्टर भी मौजूद रहते हैं, लेकिन अपना घर फिर भी अपना होता है। अपने पालतू पैटस, अपने हाथों से लगाए पेड-पौधे, जिनकी देखभाल करने में उनका समय बीतता था और सुख मिलता था, वह सब तो छूटा ही, अपनी दिनचर्या अपनी मर्जी से बिताने का सुख भी गया। इस सब का उनको बहुत गहरा सदमा पहुंचा और वह डिप्रेशन में रहने लगीं।
हाल यह हो गया कि उनकी यादाश्त में वक्त उसी पल पर ठहर गया, जब यह हादसा हुआ था। उनसे जब भी बात करने की कोशिश करो, वह उसी घटना को दोहराती कि कैसे उनकी काम वाली बाई ने लापरवाही की और बाथरूम के फर्श पर साबुन का पानी छोड़कर चली गई। उसके बाद ही बाथरूम जाने पर उनका पैर फिसला और यह हादसा हो गया। उनको जैसे जीने की इच्छा ही नहीं रह गई थी। बात-बात में कहतीं कि इस तरह परबस होकर जीने से तो मर जाना अच्छा।
उनको किस तरह धीरे-धीरे समझा कर वहाँ के स्टाफ की मदद से काफी हद तक अवसाद से बाहर लाया गया और उनके मन में फिर से जीने की उम्मीद जगाई गई, वे सब बातें फिर कभी। लेकिन जरा सोचिए, उस दिन वाकई अगर उस काम वाली बाई ने थोड़ी सावधानी बरती होती, या अगर बाथरूम में उचित रोशनी और हैंडल की व्यवस्था होती, तो यह इतना बड़ा हादसा होने से बच सकता था ना।
अब आप सोचेंगे कि ऐसा हादसा तो किसी के साथ भी हो सकता है। लेकिन खासकर बुजुर्ग ऐसी दुर्घटनाओं के अक्सर शिकार हो जाते हैं। और इसका कारण है बढ़ती उम्र के साथ उनकी मोबिलिटी तथा संतुलन में कमी होना, और हड्डियों का कमजोर पड़ना। उनके हिप्स, बांह, थाय आदि में फ्रैक्चर अक्सर गिरने और ऑस्टियोपोरोसिस के संयुक्त प्रभावों के कारण ही होता है।
ऐसे में जैसे हम अपने घर में एक शिशु के आने से पहले घर की बेबी प्रूफिंग करते हैं, उसी तरह से घर में किसी बुजुर्ग व्यक्ति के होने पर अगर घर को एल्डरली एक्सिडेंट प्रूफ बना लें, तो हमारी थोड़ी सी सावधानी हमारे अपने परिवार के किसी बुजुर्ग सदस्य के जीवन को मुश्किल कर देने वाले हादसे को टाल सकती है।
अपने घर को अपने बुजुर्ग सदस्यों के लिए सुरक्षित करते समय यदि हम निम्न बातों पर ध्यान दें, तो हम घर की स्थिति में काफ़ी सुधार कर सकते हैं:
- सामने के दरवाज़े पर हैंडरेल के साथ रैंप स्थापित करें।
- घर के फ़र्नीचर को ठीक से व्यवस्थित करें ताकि चलने के लिए पर्याप्त जगह रहे ।
- ऐसे फर्नीचर के चुनें जो मानक ऊँचाई पर हों, ताकि बैठने उठने में आसानी रहे। बेड या कुर्सी ज्यादा ऊंचे या नीचे होने से बुजुर्ग व्यक्ति को संतुलन में असुविधा हो सकती है।
- सहारे के लिए बैकरेस्ट और आर्मरेस्ट वाली कुर्सियाँ चुनें।
- सभी कालीनों को फ़र्श पर मज़बूती से लगाएँ ।
- घर के गीले रहने वाले हिस्सों में नॉन-स्लिप मैट रखें ।
- शौचालयों में ग्रैब बार लगाएं ।
- बाथरूम में शॉवर चेयर रखें।
- घर के सभी हिस्सों में उचित रोशनी की व्यवस्था करें।
- अक्सर इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित करें।
ये सब बदलाव करके आप अपने घर को बुजुर्गों के रहने के लिए आसान और सुरक्षित बना सकते हैं । इसके अलावा, ऐसे मेडिकल अलर्ट डिवाइस का उपयोग भी किया जा सकता है, जो गिरने का पता लगा सकते हैं और आपातकालीन संपर्कों को सचेत कर सकते हैं।
साथ ही, जहां तक संभव हो, अपने घर के बुजुर्ग सदस्य कि जगह में बदलाव न करें, जैसे कि उनका कमरा, उनका बिस्तर वगैरह; क्योंकि उसकी उनको आदत होती है, जिससे दुर्घटना की संभावना बहुत कम हो जाती है ।
और अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की सहायता उनके काम में नहीं, बल्कि उनके आत्मनिर्भर रहने में करें। विश्वास रखें, वे जितने सक्रिय और व्यस्त रहेंगे, उनका स्वास्थ्य और जीवन उतना ही अच्छा चलेगा। इस बारे में अपना एक व्यक्तिगत अनुभव मैं आपसे साझा करूंगी अपने अगले ब्लाग में। तब तक के लिए सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें।
आलेख: डा. अनीता एम कुमार