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आओ जर्नल लिखें
ओल्ड एज होम्स में काम करने के दौरान हम वहाँ के रेसीडेंट्स से बहुत-सी एक्सरसाइज़ करवाते थे, जिनमें से एक, जो सबसे ज्यादा पसंद की गई और उपयोगी भी रही, वह थी जर्नल राइटिंग। हमने जर्नल राइटिंग के लिए कोई रूल सेट नहीं किये थे। सबको उनकी पसंद के राइटिंग पैड्स और पेन-पेंसिल बांटे जाते थे। कुछ लाइंस वाले पैड्स पसंद करते थे, तो कुछ को प्लेन पैड्स पसंद आते थे। किसी को पेन चाहिए, तो किसी को पेंसिल, और कोई कलर्ड पेंसिल या क्रेऑन्स की मांग करते थे। किसी को कुछ लिखना था, और कोई स्केच बना कर एक्सप्रेस करना चाहता था। यहाँ तक कि कुछ ज्यादा ओल्ड लोग, जो बैठ नहीं पाते थे या जिनको ग्रिप का इशू था, उनको ऑडियो रिकॉर्ड करके अपनी बात कहने की भी छूट थी। आइडिया यह था कि सब हिस्सा लें, अपनी दिन भर की एक्टिविटीज़ में से जो लिखना चाहते हैं या बताना चाहते हैं, वह याद करके शेयर करें, और कोई भी किसी भी वजह से ऐसा कर पाने से छूट ना जाए।
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आप मानेंगे नहीं कि कैसी-कैसी कलाकारियाँ उन सबकी हमारे सामने आईं। किसी की हैंडराइटिंग कमाल, तो किसी की चित्रकारी बेमिसाल। किसी का राइटिंग का स्टाइल चौंका गया, तो किसी ने अपने ऑडियो में दिन भर की क्या मस्त कमेंट्री की। कोई करसिव राइटिंग और कोई कैलीग्राफी ट्राइ कर रहा था, तो कोई कलर्ड पेन-पेंसिल्स और स्टिकर्स का मस्त इस्तेमाल करके अपने जर्नल को सजाने में लगा था। और सबसे ज्यादा मज़ा तो तब आता था, जब अगले दिन ग्रुप में बैठ कर उनसे अपना-अपना जर्नल सुनाने को कहा जाता था। बीते जमाने याद करने और अक्सर पिछले कल की बात भूल जाने वाले वे लोग क्या चैलेंज करते थे एक-दूसरे की मेमरी को, कि जो तुम बता रहे हो वो तो कल तुमने किया ही नहीं था, या ऐसा तो हुआ ही नहीं था, बल्कि ये हुआ था। कुछ दिन में ही उनको जर्नल लिखने की ऐसी आदत लगी, कि अगर किसी दिन यह एक्सरसाइज़ मिस हो जाती थी, तो दूसरी एक्सरसाइज़ खत्म करने के बाद भी वे सुनाना चाहते थे कि जर्नल में उन्होंने नया क्या लिखा है।
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इसमें कोई संदेह नहीं कि जर्नल लिखना किसी भी एज ग्रुप के लिए एक बहुत अच्छी आदत है। अगर आप परेशान हैं, तो सारी परेशानी कागज पर उतार कर सुकून मिल जाता है। अगर किसी बात से दुखी हैं या हर्ट हुए हैं, तो अपनी भावनाओं को जर्नल में लिखिए और बंद करके रख दीजिए। यकीन मानिए, आपका आधा दुख उड़न-छू हो जाएगा। अगर कोई खुशी की बात हुई है, तो उसको भी लिख डालिए; फिर देखिए कैसे खुशी दुगनी हो जाती है। आपके पास अपनी बात शेयर करने के लिए कोई और हो या न हो, आपका जर्नल आपका एक ऐसा अंतरंग दोस्त बन जाता है, जो आपकी हर छोटी-बड़ी बात को हर वक्त शेयर करने के लिए तैयार रहता है, और कभी आपको जज नहीं करता; ना ही कभी आपके भेद खोल कर आपको शर्मिंदा करता है। अपने जर्नल के साथ आप अपना हर सुख-दुख बिंदास बाँट सकते हैं और सुकून पा सकते हैं। और यह बात मैं आपको अपने अनुभव से बता रही हूँ।
खासकर 60+ उम्र के लोगों के लिए तो इसके और भी कई फायदे हैं, जैसेकि तनाव कम हो जाता है, मूड अच्छा हो जाता है, नई-नई तरह से लिखना ट्राइ करने का मन करता है और अपने सेफ स्पेस में खुद को एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है। इसके अलावा याददाश्त भी अच्छी होने लगती है, और दिमाग एक्टिव रहता है। यह सब लिखने की कोशिश में क्रिएटिविटी भी बेहतर होने लगती है। हमें खुद को बेहतर ढंग से जानने और एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है। हम अपने जीवन के अनुभवों और उनसे मिली सीख को दोहरा पाते हैं, और अपने जीवन के बारे में नए सिरे से चिंतन कर पाते हैं। कई ऐसी बातें, जिनके लिए हम जीवन में कृतज्ञ होना भूल जाते हैं, वे भी हमें याद आ जाती हैं। हमारा जर्नल हमारे प्रियजनों के लिए एक कीमती यादगार तो हो ही सकता है, यह भी संभव है कि हम अपने अर्जित ज्ञान और अनुभवों के खजाने से कुछ ऐसा लिख जाएं, जो हमारी अगली पीढ़ी के लिए एक व्यक्तिगत विरासत बन जाए।
इसके अलावा, जर्नल लिखने के दौरान की व्यस्तता में हमारा टाइम तो अच्छे से बीत ही जाता है, लाइफ में एक डिसिप्लिन भी आ जाता है। और दिन भर की व्यस्तता हमें रात में अच्छी नींद लेने में मदद भी करती है। कुल मिलाकर, जर्नलिंग बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए एक बहुत ही फायदेमंद एक्सरसाइज़ हो सकती है, जो जीवन को रिफ्लेक्ट करने का एक मीडियम बन सकती है।
अब आप सोचेंगे कि जर्नल लिखना शुरू कैसे किया जाए। तो सबसे पहले यह तय कीजिए कि आपको लिखना है या रिकॉर्ड करना है। और अगर लिखना है, तो हाथ से लिखना चाहते हैं या डिजिटल जर्नल बनाना चाहते हैं। नोटबुक में सादा लिखने का मन है, या स्क्रैपबुक में सजावट के साथ जर्नलिंग करना चाहते हैं। यह तय हो जाने के बाद इसके लिए दिन का एक समय निश्चित करें, फिर चाहे वह ब्रेकफास्ट के बाद का समय हो या शाम की चाय के साथ का समय। हर दिन एक ही समय पर लिखने से एक डिसिप्लिन बन जाएगा। लेकिन इसके लिए खुद को बर्डन करने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है। इस रूटीन को आप अपनी सुविधा के हिसाब से जब चाहें आगे-पीछे कर सकते हैं।
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शुरुआत दिन भर की छोटी-छोटी घटनाओं या यादों के साथ की जा सकती है। आपका जर्नल आपकी प्राइवेट प्रॉपर्टी है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि इसे आप किसी को सुनाना चाहते हैं या नहीं। आप इसमें जो चाहे लिख सकते हैं—अपनी यादें, अपनी दिनचर्या, अपनी खुशी, अपने दुख, अपनी उपलब्धियां, अपने सपने, अपनी फैमिली हिस्ट्री या ऐसी बातें, जो आप चाहते हैं कि आपके आगे आने वाली पीढ़ियों को भी पता रहें। चाहें तो अपने लिए रिमाइन्डर्स लिख लें। मतलब यह कि आप जो चाहे एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं, और अपने जर्नल को पर्सनल टच देकर यूनीक बना सकते हैं। इस काम को आप मजे से चाय-कॉफी पीते हुए और अपनी पसंद का संगीत सुनते हुए भी कर सकते हैं। भाषा और ग्रामर सही नहीं हो, तो भी चलेगा। आपको खुद को एक्सप्रेस करना है, बस। और इसे किसी पनिशमेंट की तरह लेने की जरूरत तो बिल्कुल भी नहीं। जिस दिन मन नहीं हो, तो लिखने की बजाय कोई चित्र या स्केच ही बना लें। लेकिन इसे जारी जरूर रखें।
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सारांश में कहें तो जर्नल लिखने की कोई भी शर्त या रूल नहीं है। यह काम आपको अपनी मर्जी से करना है, मजे से करना है, और अपने सुविधा के समय पर करना है। फिर देखिए, न सिर्फ आपको अपना जर्नल लिखने में मज़ा आएगा, बल्कि जब आप इसके पन्ने पलट कर देखेंगे, तो आपको इसको पढ़ने में भी बहुत अच्छा लगेगा।
तो फिर देर किस बात की, करें आज ही से अपना जर्नल लिखने की शुरुआत, और कर लें अपनी ज़िंदगी को खूबसूरती के साथ डॉक्युमेंट, अपने लिए भी, अपनी अगली पीढ़ियों के लिए भी।
डॉ. अनीता एम कुमार
दिनांक: 18 मार्च 2025