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रिटायरमेंट बनाम आजादी
जिस तरह हमारी जलवायु चार मौसमों में बँटी है वसंत, ग्रीष्म, शरद, और शीत,
ठीक वैसे ही हमारी ज़िंदगी में भी चार मौसम शामिल होते हैं – बचपन, युवावस्था,
प्रौढ़ावस्था, और वृद्धावस्था। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि जलवायु की तरह ज़िंदगी के
मौसम एक ही लाइफ टाइम में दोबारा लौट कर नहीं आते। अब समस्या यह है कि
बचपन खेल-कूद और पढ़ाई में, युवावस्था व्यवसाय जमाने और घर बसाने में, और
प्रौढ़ावस्था पैसा कमाने और परिवार पालने में कब निकल जाते हैं, पता ही नहीं
चलता, लेकिन फिर आती है रिटायरमेंट की उम्र, यानि वृद्धावस्था, जिसके बारे में
मीर अनीस लखनवी ने क्या खूब कहा है:
“दुनिया भी अजब सराये-फ़ानी देखी,
हर चीज यहाँ की आनी-जानी देखी!
जो आ के ना जाए वह बुढ़ापा देखा,
जो जा के न आए वह जवानी देखी!!”
वैसे देखा जाए तो वृद्धावस्था अपने-आप में एक ब्लेसिंग है, जो सबके नसीब में नहीं
होती। और सेवानिवृत्ति के बाद तो एक नई जिंदगी मिलती है, जिसे आप अपने मन
मुताबिक जी सकते हैं। मगर अक्सर लोग मान लेते हैं कि अब हम सेवानिवृत्त हो गए
तो किसी काम के लायक नहीं रहे, और यही सोच उन्हें डिप्रेशन की स्थिति में ले जाती
है। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसने ज़िंदगी का दो तिहाई हिस्सा व्यस्त रह कर
और लगातार मेहनत करके स्वाभिमान के साथ बिताया है, सेवानिवृत्ति अपने साथ
कई चुनौतियाँ लेकर आ सकती है। आय में कमी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और
अकेलेपन की भावना इस स्थिति को और भी जटिल बना देते हैं।
मुझे अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में बहुत-सी सोसायटीज़ और ओल्ड एज होम्स में
जाकर कई 60+ लोगों से कई-कई बार बात करने का मौका मिला। उनमें से
ज्यादातर लोगों ने मुझसे दिल खोल कर बातें कीं। और तब मैंने इस बात का गहराई
से विश्लेषण किया कि कैसे कुछ लोग इस उम्र में भी आत्म सम्मान के साथ खुश रह
कर ज़िंदगी जीते हैं, जबकि कुछ लोग इस उम्र तक आते-आते डिप्रेशन के शिकार हो
जाते हैं। दरअसल ऐसी स्थिति से बचने का एक ही उपाय है कि आपको सेवानिवृत्त
होने के बाद क्या कैसे मैनेज करना है, इसकी योजना पहले से बना लेनी चाहिए,
ताकि सेवानिवृत्ति के बाद आपको कोई तकलीफ न हो। बढ़ती उम्र में अपने स्वास्थ्य
की नियमित देखभाल के बारे में योजना बनाना भी बहुत जरूरी होता है।