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सम्मान वृद्धावस्था: आत्मनिर्भर और गरिमापूर्ण जीवन की तैयारी

बुढ़ापा एक विशेषाधिकार है, न कि अभिशाप। यह ब्लॉग समझाता है कि कैसे भारतीय बुजुर्ग आत्मनिर्भर बनकर गरिमा से जी सकते हैं और सामाजिक बदलावों के साथ तालमेल बिठा सकते हैं।

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सम्मान वृद्धावस्था

"बुढ़ापा कोई अभिशाप नहीं, बल्कि एक विशेषाधिकार है; और अच्छी खबर यह है कि हम सभी उम्र के साथ अपने बेहतर संस्करण बन सकते हैं।"
— मैरी बुचान

पिछले कुछ सालों में बहुत से वृद्धाश्रमों में मेरा जाना हुआ है। उनमें से बहुत से लोगों से हुई बातचीत में ज्यादातर ने बताया कि उनके जीवन में सबसे बड़ा पश्चाताप यही रह गया कि उन्होंने अपने परिवार वालों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लिया, उनसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा ली। शायद इसीलिए गरिमा और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने का जो पाठ उन्होंने हमेशा से पढ़ा-पढ़ाया, इस उम्र में आकर उसकी धज्जियां उड़ गईं।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? शायद इसका मुख्य कारण यही रहा कि जीवन की इस अवस्था के लिए उन्होंने पहले से पर्याप्त तैयारी नहीं की, और वे आत्मनिर्भर नहीं रह पाए। शायद वे सबके लिए सोचने और करने में इतने व्यस्त रहे कि अपने बारे में उन्होंने कुछ सोचा और किया ही नहीं। आखिर क्यों नहीं कर पाए वो ऐसा... गहराई से विचार करें तो इसके कई कारण समझ में आते हैं, जैसे कि सीमित आय, सीमित संसाधन, वर्तमान की समस्याओं को प्राथमिकता, अपने लिए सोचने पर स्वार्थी होने का अपराध बोध। लेकिन इससे भी ज्यादा सोचने वाली बात यह है कि आखिर ऐसा क्या हो जाता है कि जो माता-पिता अपनी जरूरतें अनदेखी कर अपने बच्चों के लिए सब कुछ करते हैं, वो ही वृद्धावस्था में उनके लिए बोझ बन जाते हैं।

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। किसी एक पक्ष पर दोष लगाकर हम मुक्त नहीं हो सकते। ऐसा तो संभव नहीं कि हर बुजुर्ग व्यक्ति बहुत अपेक्षा रखने वाला या चिड़चिड़ा हो, या हर युवा स्वार्थी और आत्मकेंद्रित हो। दोनों पक्षों की समस्याएं वास्तविक हो सकती हैं। लेकिन समस्याएं हैं तो उनके समाधान भी अवश्य होंगे। तो आइए, पहले हम भारतीय परिवेश में बदलते पारिवारिक मूल्य और उनके कारणों को समझने का प्रयास करते हैं।

हमारी संस्कृति में माता-पिता की सेवा को हमेशा से परम कर्तव्य और दायित्व माना जाता रहा है। लेकिन माता-पिता के प्रति पारंपरिक दायित्व और उन्हें वह प्यार और देखभाल प्रदान करने का कर्तव्य, जिसके वे हकदार हैं, अब पूरा करना मुश्किल होता जा रहा है। युवा लोगों की रोजगार के अवसरों की तलाश उन्हें अपने घरों से दूर दूसरे शहरों और देशों में ले जाती है। आधुनिकीकरण के कारण पारंपरिक संयुक्त परिवार की संरचना टूट रही है। इससे अंतर-पीढ़ीगत संबंधों में तनाव पैदा हुआ है। स्वतंत्र रूप से जीवन जीने की इच्छा, और आगे बढ़ने की होड़, और धैर्य का अभाव भी युवा पीढ़ी को बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने के लिए त्याग करने का कम इच्छुक बना रहे हैं।

लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बुढ़ापा जीवन की एक अनिवार्य अवस्था है, जिसका अनुभव हम सभी को होने वाला है। तो क्यों न इस बात को समझते हुए हम इस अवस्था को गरिमा के साथ जीने की पहले से तैयारी रखें, ताकि न हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे; और न ही हमारे प्रियजनों के जीवन पर इसका कोई विपरीत असर हो, जिसकी वजह से हमारे आपसी संबंध खराब हों। गरिमा से बुढ़ापा जीने का मतलब है, जीवन के अंतिम चरण में भी आत्म-मूल्य, सम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना को बनाए रखना। इसके लिए यथासंभव अपने दैनिक कार्य खुद करने का प्रयास करें। इससे न केवल आपको आत्मविश्वास मिलेगा और आप सक्रिय रहेंगे, बल्कि आप दूसरों पर निर्भर होने की भावना से भी बचेंगे। नियमित शारीरिक व्यायाम, संतुलित आहार और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की निरंतर देखभाल इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। घर की संरचना में अपनी सुविधा के अनुसार बदलाव कर लें, ताकि आपको अपनी दिनचर्या स्वतंत्र रूप से करने में आसानी हो, और आपकी जरूरत की सभी चीजें आपके लिए सुलभ रहें। इसके अलावा, घर की सुरक्षा और अपने स्वास्थ्य की निगरानी के लिए स्मार्ट डिवाइस वृद्ध वयस्कों को अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से अधिक आसानी से प्रबंधित करने में सक्षम बनाती हैं।

आर्थिक स्वतंत्रता का होना वृद्धावस्था में गरिमामय जीवन का महत्वपूर्ण आधार है। यदि संभव हो तो सेवानिवृत्ति से पहले अच्छी वित्तीय योजना बनाएं, ताकि वृद्धावस्था में आर्थिक समस्याओं का सामना न करना पड़े। सबसे जरूरी बात यह है कि कभी भी भावनाओं में बहकर अपने जीते जी अपनी सारी संपत्ति और जमापूँजी किसी के हवाले न करें। हम सभी को लगता है कि हमारे प्रियजन ऐसे नहीं हैं और वे हमारे साथ ऐसा कुछ कभी कर ही नहीं सकते, लेकिन समय के साथ लोगों की जरूरतें और प्राथमिकताएं बदल सकती हैं। इसलिए जहां तक संभव हो, अपनी आर्थिक सुरक्षा की जिम्मेदारी आप अपने पास ही रखें।

वृद्धावस्था में अकेलापन और सामाजिक अलगाव भी आम चुनौतियाँ हैं। परिवार, मित्र और सामुदायिक नेटवर्क हमारे लिए एक सहायता प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं, जिनसे अपनेपन और आपसी सम्मान एवं सुरक्षा की भावना को बढ़ावा मिलता है। इसीलिए परिवार और समाज के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है। अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ समय बिताएं, उनके साथ अपने अनुभव साझा करें। साथ ही, मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के लिए उन गतिविधियों में शामिल होते रहना भी जरूरी है, जिनमें आपकी रुचि है। पढ़ना, लिखना, बागवानी, पेंटिंग, संगीत सुनना या कोई अन्य रचनात्मक काम करते रहने से जीवन में उत्साह और प्रेरणा बनी रहती है। इससे मन प्रसन्न रहता है और जीवन में एक उद्देश्य का अहसास होता है।

जीवन के इस चरण में प्रियजनों, शारीरिक क्षमताओं या करियर की पहचान के खो जाने का सदमा भी हो सकता है। इसलिए जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखते हुए इन परिवर्तनों से निपटने के लिए भावनात्मक लचीलापन विकसित करना बहुत ज़रूरी है, ताकि चिंता, दुख, और अवसाद जैसी उन सभी भावनाओं को दूर करने में मदद मिल सके जो हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं। व्यायाम, मेडिटेशन और अपने शौक़ में लगे रहने जैसी आदतें भावनात्मक स्थिरता में योगदान दे सकती हैं। भक्ति, ध्यान, और अध्यात्म से जुड़े रहने से जीवन में सकारात्मकता, मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है।

वृद्धावस्था के बारे में समाज की यह सोच कि वृद्ध लोग कमज़ोर, अक्षम या अपेक्षाकृत कम मूल्यवान होते हैं, वृद्ध व्यक्तियों की गरिमा को नष्ट करती है और हीनता की भावना को बढ़ावा देती है। गरिमामय वृद्धावस्था के लिए इस सोच को सक्रिय रूप से चुनौती देने की आवश्यकता है। बुजुर्गों की बुद्धि, प्रतिभा और क्षमताओं को महत्व देने से एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है, जहाँ हर कोई सम्मानित महसूस करता है। इस गलतफहमी में न रहें कि हर जानकारी आपको नेट पर मिल जाएगी। हमारे बुजुर्ग बेशकीमती जानकारियों का अगाध स्रोत हैं। उनके ज्ञान का सम्मान करें और उसका भरपूर लाभ उठाएं। परिवार, देखभाल करने वाले, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता और समाज, सभी को संयुक्त रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इस अवस्था को गरिमा के साथ जीने में वृद्ध व्यक्तियों का सहयोग करें, और उन्हें समुचित सुविधाएं प्रदान करें।

कुल मिलाकर, बुढ़ापे में गरिमा से जीवन जीने का अर्थ है अपनी अवस्था को स्वीकार करना, अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना, परिवार और समाज से जुड़े रहना और आत्मनिर्भरता बनाए रखना। हर किसी को अपने जीवन में वृद्धावस्था तक पहुँच कर इसका आनंद लेने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। जीवन की इस अवस्था को एक नए दृष्टिकोण से देखें और इसका पूरा आनंद उठाएं। गरिमा के साथ वृद्धावस्था बिताना न केवल आपकी, बल्कि आपके आसपास के लोगों की जिंदगी को भी खुशहाल बना देगा।


डा. अनीता एम कुमार
दिनांक: 04 अक्टूबर 2024